वारंट एक ऐसा न्यायिक आदेश है, जो किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए सक्षम न्यायालय द्वारा पुलिस के मार्फत जारी किया जाता है। हालांकि कोई भी वारंट जारी करते समय न्यायालय बड़ी सावधानी बरतता है। ऐसा इसलिए कि गिरफ्तारी का वारंट किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को समाप्त अथवा प्रतिबंधित करता है। देखा जाए तो वारंट न्यायालय को प्राप्त एक ऐसी असीम शक्ति है जो व्यक्ति को गिरफ्तार कर न्यायालय के समक्ष लाए जाने का प्रावधान करती है।
कानून के जानकारों की राय है कि वारंट की शक्ति के बगैर न्यायालय को अपंग माना जा सकता है। इसलिए भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता वारंट के माध्यम से न्यायालय को वह अस्त्र प्रदान करती है, जिसके सामने बड़ी से बड़ी शक्तियों को भी पस्त किया जा सकता है। ऐसा बताया जाता है कि न्यायाधीश और मजिस्ट्रेट को प्राप्त वारंट जारी करने की शक्ति, किसी न्यायाधीश को प्राप्त शक्तियों में सर्वाधिक सार्थक शक्ति है, जिसके अनुप्रयोग से उनके न्याय देने की प्रक्रिया में गति आती है, अन्यथा प्रतिवादी लोग किसी भी मामले को ज्यादा से ज्यादा बार लटकाने या टलवाने की कोशिश करते।
# जानिए, आखिर गिरफ्तारी वारंट कब जारी होता है?
आपको पता होना चाहिए कि न्यायालय जिस व्यक्ति को हाजिर करवाना चाहता है, उस व्यक्ति को सबसे पहले समन जारी करता है। कहने का तातपर्य यह कि समन के माध्यम से प्रतिवादी को न्यायालय में हाजिर करवाने का प्रयास किया जाता है। हालांकि, यदि व्यक्ति विशेष समन से बचने की कोशिश कर रहा है और समन के तामील होने के उपरांत भी वह न्यायालय के समक्ष हाजिर नहीं होता है और न्याय की कार्यवाही में बाधा बनता प्रतीत होता है तो ऐसी परिस्थिति में न्यायालय सम्बन्धित व्यक्ति को गिरफ्तार करके अपने समक्ष पेश किए जाने का वारंट जारी करता है।
यही वजह है कि गिरफ्तारी वारंट का नाम सुनकर किसी भी व्यक्ति के मन में भय पैदा हो जाता है। जिसका लाभ उठाकर कई लोग छल-कपट/प्रपंच भी कर लेते हैं। इसलिए गिरफ्तारी वारंट जारी करने और उसके तामील करने (एक्जीक्यूशन) के लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1908 में पूरी व्यवस्थित प्रक्रिया दी गई है। क्योंकि दंड प्रक्रिया संहिता ही वह कानून है जिसके ज़रिए भारत में गिरफ्तारी वारंट की उत्पत्ति हुई है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 70 से 80 तक गिरफ्तारी वारंट के संबंध में व्यापक प्रावधान किया हुआ है, जिसके आधार पर पूरी प्रक्रिया निष्पादित की जाती है।
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# गिरफ्तारी वारंट आखिर किसके द्वारा और कब जारी किया जाता है?
कानून के जानकार बताते हैं कि कोई भी गिरफ्तारी का वारंट हमेशा किसी अदालत या फिर सेमी ज्यूडिशियल कोर्ट जैसे कलेक्टर, एसडीएम इत्यादि के द्वारा जारी किया जाता है। इन सबके अलावा किसी भी व्यक्ति के पास गिरफ्तारी वारंट जारी करने की शक्ति नहीं होती है। आम तौर पर गिरफ्तारी वारंट जारी करने की शक्ति अदालत के पास होती है। यह शक्ति अदालत को इसलिए दी गई है क्योंकि अदालत जिस व्यक्ति को किसी मुकदमे में बुलाना चाहती है उसे पुलिस के मार्फ़त बुला सके। जैसे किसी प्रकरण में यदि अदालत को किसी व्यक्ति के बयान लेने हैं, तब भी वह उस संबंधित व्यक्ति को गिरफ्तारी का वारंट जारी कर सकती है।
वहीं, किसी प्रकरण में यदि कोई व्यक्ति आरोपी है और वह व्यक्ति अदालत के सामने उपस्थित नहीं हो रहा है जिससे कार्यवाही को आगे चलाया जा सके, तब अदालत गिरफ्तारी का वारंट जारी कर उस संबंधित व्यक्ति को अदालत के समक्ष बुलाती है। कहने का तातपर्य यह कि यदि किसी व्यक्ति ने परिवादी के रूप में कोई प्रकरण अदालत में लगाया है तब आरोपी यदि अदालत के समक्ष उपस्थित नहीं होता है तब भी अदालत गिरफ्तारी का वारंट जारी कर देती है।
# आखिर में गिरफ्तारी वारंट किसे दिया जाता है और इसकी अवधि क्या होती है?
किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी का वारंट आमतौर पर पुलिस को ही जारी किया जाता है। इसलिए न्यायालय वारंट बनाकर संबंधित थाना क्षेत्र के थाना प्रभारी के नाम पर जारी कर देती है और उसे यह आदेश देती है कि किसी भी सूरत में उक्त नामित व्यक्ति को गिरफ्तार कर अदालत के समक्ष लाया जाए। हालांकि यहां पर कानून ने अदालत की इस शक्ति को थोड़ा लचीला करते हुए शक्ति को विस्तृत कर दिया है और संहिता की धारा 72 में यह प्रावधान किया गया है कि अदालत किसी भी व्यक्ति को ऐसा वारंट जारी कर सकती है जो वारंट में नामित व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए सक्षम होगा। वहीं, जब न्यायालय किसी भी गिरफ्तारी वारंट को जारी करती है तब वह वारंट दो ही स्थितियों में समाप्त होता है। पहली स्थिति में जब पुलिस नामित व्यक्ति को गिरफ्तार कर अदालत के सामने पेश कर दे या फिर वारंट में नामित व्यक्ति स्वयं अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण (सरेंडर) कर दे।
# गिरफ्तारी वारंट में जेल जाना होता है, लेकिन पुलिस किसी को भी सीधे जेल नहीं भेज सकती है, बल्कि न्यायालय में पेश करना होता है
विधि विशेषज्ञ बताते हैं कि जेल जाने या नहीं जाने का प्रश्न उस मूल प्रकरण पर निर्भर करता है जिसके लिए किसी व्यक्ति को कोर्ट ने सामने समक्ष बुलाया हुआ है। जैसे यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तारी वारंट जारी करके बयान देने के लिए न्यायालय ने बुलाया तो उसके बयान देने पर कोर्ट का लक्ष्य पूरा हो जाएगा। इसलिए बयान लेकर उस नामित व्यक्ति को छोड़ दिया जाएगा। वहीं, किसी गैर जमानती अपराध में यदि किसी व्यक्ति को आरोपी बनाने हेतु वारंट जारी किया गया है तो उसे जेल भी जाना पड़ सकता है, क्योंकि गैर जमानती अपराध में जमानत मांगना अभियुक्त का अधिकार नहीं होता है। वहीं, किसी जमानती अपराध में जेल नहीं जाना पड़ता है, इसलिए ऐसे अपराध में जारी किये गए गिरफ्तारी के वारंट में जमानत मिल जाती है, कभी कभार थाना के स्तर से भी। कुल मिलाकर किसी व्यक्ति का जेल जाना या नहीं जाना उस प्रकरण पर निर्भर करेगा जिसके लिए वारंट जारी किया गया है।
विधि की किताबों में यह स्पष्ट रूप से परिभाषित है कि किसी न्यायालय द्वारा जारी किए गए गिरफ्तारी के वारंट में पुलिस की जिम्मेदारी केवल व्यक्ति को गिरफ्तार करके कोर्ट के समक्ष पेश करने तक ही सीमित होती है। पुलिस किसी भी व्यक्ति को सीधे जेल नहीं भेजती है, हालांकि वह सम्बन्धित वारंट में नामित व्यक्ति को चौबीस घंटे तक थाने में अपनी अभिरक्षा में रख सकती है। इसी बीच पुलिस गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अदालत के सामने पेश कर देती है।
# जानिए, गिरफ्तारी के वारंट का प्रारूप और अवधि क्या होते हैं?
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 70 के अनुसार- पहला, न्यायालय द्वारा इस संहिता के अधीन जारी किया गया गिरफ्तारी का प्रत्येक वारंट लिखित रूप में और ऐसे न्यायालय के पीठासीन अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित होगा और उस पर उस न्यायालय की मोहर/मुहर भी लगी होगी।
दूसरा, ऐसा प्रत्येक वारंट तब तक प्रवर्तन में रहेगा जब तक वह उसे जारी करने वाले न्यायालय द्वारा रद्द नहीं कर दिया जाता है या जब तक वह निष्पादित नहीं कर दिया जाता है।
# समझिये, गिरफ्तारी के बाद की प्रक्रिया क्या होती है?
जब वारंट का निष्पादन जिले के बाहर जाकर व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तो उसे धारा 80 के अनुसार उस जिले के कार्यपालक मजिस्ट्रेट पुलिस आयुक्त या पुलिस अधीक्षक के समक्ष ले जाया जाएगा। ऐसा मजिस्ट्रेट व पुलिस अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि क्या वह वही व्यक्ति है जिसे गिरफ्तार किया जाना आशयित है। यदि गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का अपराध जमानतीय है तो जमानत लेकर बंधपत्र को वारंट करने वाले न्यायालय को भेज देगा। यदि गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का अपराध अजमानतीय है तो धारा 437 के उपबंधों का अनुसरण करते हुए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायालय को भेजेगा। न्यायालय उचित आदेश पारित कर सकेगा।
# समझिए, जमानतीय वारंट और गैरजमानतीय वारंट क्या होता है?
लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि वारंट कितने प्रकार के होते हैं, तो जवाब मिलता है कि वारंट दो प्रकार के होते हैं- जमानतीय वारंट और गैर जमानतीय वारंट। दरअसल,
जमानतीय वारंट वह वारंट होता है जिसमें अदालत को यह अधिकार दिया गया है कि वह स्वविवेक के अनुसार यह निर्देश दे सकता है कि यदि जिस व्यक्ति के नाम पर वारंट जारी किया गया है, वह व्यक्ति नियत दिनांक एवं समय पर न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने का वचन दे रहा है और इसके लिए वह प्रतिभू सहित बंधपत्र निष्पादित कर देता है तो उस व्यक्ति को बंधपत्र लेकर पुलिस अभिरक्षा से मुक्त किया जा सकेगा। वारंट में प्रतिभू सहित बंधपत्र के पृष्ठांकन में निम्नलिखित बातों का उल्लेख किया जाना चाहिए- पहला, प्रतिभुओं की संख्या। दूसरा, उस राशि का उल्लेख जिसके लिए प्रतिभू एवं गिरफ्तार किया जाने वाला व्यक्ति बंधपत्र द्वारा आबध्य है। तीसरा, वह समय जिस पर उसे न्यायालय के समक्ष उपस्थित होना है। और चौथा, जब वारंट का निष्पादन करने वाला अधिकारी ऐसा बंध पत्र प्राप्त कर लेता है तो वह बंधपत्र न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया जाएगा।
वहीं, गैर जमानतीय वारंट एक ऐसा वारंट होता है जिसमें प्रतिभू सहित बंधपत्र का निष्पादन जैसा कोई विकल्प नहीं होता है। ऐसे वारंट के अंतर्गत गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति को अनिवार्यतया गिरफ्तार करके सक्षम न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। फिर न्यायालय उसे जमानत पर मुक्त होने का आदेश दे सकता है।
# समझिए, वारंट और समन में क्या अंतर होता है?
समन एवं वारंट दोनों का उद्देश्य एक ही है, वह है किसी व्यक्ति को न्यायालय में उपस्थित होने के लिए पाबंद करना। लेकिन इन दोनों में थोड़ा-सा अंतर है। वह मूल अंतर यह है कि समन किसी भी व्यक्ति को न्यायालय में उपस्थित होने के लिए जारी किया जाता है, जबकि वारंट व्यक्ति विशेष की गिरफ्तारी के लिए जारी किया जाता है। वह पुलिस अधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति के नाम से निर्दिष्ट होता है।
अमूमन, समन उस व्यक्ति को निर्दिष्ट होता है तथा उस व्यक्ति के पते पर ही निर्दिष्ट होता है, जिस व्यक्ति के लिए जारी किया जाता है। जिस व्यक्ति को न्यायालय में उपस्थित किया जाना है। परंतु गिरफ्तारी वारंट उस व्यक्ति के नाम से तो जारी होता है परंतु निर्दिष्ट किसी अन्य को होता है। किसी अन्य को आदेश होता है कि वह उस व्यक्ति को जिसके लिए गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है, उसे न्यायालय के समक्ष पेश करे।
# जानिए आखिर बिना वारंट के भी पुलिस किसी को कब गिरफ्तार कर सकती है?
सीआरपीसी की धारा 41 के तहत पुलिस को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार करने का अधिकार प्राप्त हैं। जब आप एक पुलिस अधिकारी के समक्ष अपराध करते हैं; उदाहरण के लिए, किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में, या पुलिस स्टेशन में); जब पुलिस को एक विश्वसनीय जानकारी या शिकायत मिलती है कि आपने एक संज्ञेय अपराध किया है; अगर न्यायालय ने आपको एक प्रामाणिक अपराधी घोषित किया है; अगर पुलिस ने आपको चोरी की संपत्ति के साथ पाया गया है और वे आप पर चोरी करने का संदेह है; अगर आप एक पुलिस अधिकारी को परेशान करते हैं जो अपना कर्तव्य पूरा कर रहा है; यदि आप हिरासत से भाग जाते हैं; यदि आप पर सेना से भागने का संदेह है; यदि आप भारत के बाहर किये गये किसी अपराध में एक संदिग्ध व्यक्ति हैं और आप पर भारत वापस लाए जाने की संभावना हैं; या अगर आपको अतीत में किसी अपराध के लिए दोषी पाया गया था और रिहा किए गए अभियुक्तों से संबंधित नियमों का आपने उल्लंघन किया है।
– कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार