बैंकॉक। थाइलैंड के आम चुनाव में वोट डाले जाने के बाद रविवार को मतगणना की जा रही है और 2014 के तख्तापलट से मौजूदा प्रधानमंत्री प्रयुत चान-ओचा के सत्ता में आने के नौ साल बाद इसे बदलाव के एक अहम मौके के तौर देखा जा रहा है।
प्रयुत एक ऐसे नेता की बेटी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं, जो सेना के धुर विरोधी हैं। प्रयुत, अरबपति कारोबारी एवं पूर्व प्रधानमंत्री थाकसिन शिनावात्रा की बेटी पेतोंगतार्न शिनावात्रा के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। शिनावात्रा 2001 से 2006 तक देश के प्रधानमंत्री थे।
सेना ने 2006 में तख्तापलट कर थाकसिन को सत्ता से बेदखल कर दिया था। उनकी रिश्तेदार यिंगलुक शिनावात्रा 2011 में प्रधानमंत्री बनी थीं, लेकिन प्रयुत की अगुवाई में तख्तापलट कर उन्हें सत्ता से हटा दिया गया था।
मतदान स्थानीय समयानुसार शाम पांच बजे समाप्त हो गया और इसके शुरुआती रुझान कुछ घंटे बाद आने की उम्मीद है, जबकि चुनाव नतीजों की स्पष्ट तस्वीर रविवार देर रात तक स्पष्ट होगी।
पेतोंगतार्न की अगुवाई वाले विपक्षी दल फेयु थाई पार्टी को संसद के 500 सदस्यीय निचले सदन में सर्वाधिक सीट मिलने का अनुमान है।
पेतोंगतार्न ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने के बाद कहा कि थाईलैंड में प्रभावकारी बदलाव के लिए प्रत्येक वोट महत्वपूर्ण है और उन्हें अंतिम नतीजों से काफी उम्मीदें हैं।
हालांकि, अगली सरकार का नेतृत्व कौन करेगा, यह केवल रविवार के मतदान से तय नहीं होगा। प्रधानमंत्री का चयन निचले सदन और 250 सदस्यीय सीनेट की जुलाई में एक संयुक्त बैठक में किया जाएगा।
विजेता को कम से कम 376 वोट प्राप्त करने होंगे और किसी भी पार्टी के केवल अपने दम पर ऐसा करने की संभावना नहीं है।
फेयु थाई पार्टी ने 2019 के चुनाव में सबसे अधिक सीट जीती थी, लेकिन उसके चिर प्रतिद्वंद्वी एवं सेना समर्थित पलांग प्रचारत पार्टी ने प्रयुत के साथ गठबंधन कर लिया था।
प्रयुत दोबारा चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि, इस बार सेना का समर्थन दो दलों के प्रति विभाजित है।
प्रयुत को यूनाइटेड थाई नेशन पार्टी और उपप्रधानमंत्री प्रवित वोंगसुवान का समर्थन प्राप्त है, जो एक पूर्व जनरल हैं। प्रवित, पलांग प्रचारत पार्टी के शीर्ष नेतृत्व हैं।
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प्रधानमंत्री प्रयुत पर लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था, महामारी से निपटने में कमियों और लोकतांत्रिक सुधारों को विफल करने का आरोप है।
विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय में थाई अध्ययन के विशेषज्ञ टायरेल हेबरकोर्न ने कहा, ‘‘युवा मतदाताओं की संख्या में वृद्धि और सैन्य शासन से हुए नुकसान को लेकर आम जागरूकता इस चुनाव के नतीजे तय करने में अहम साबित हो सकते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘नौ साल के सैन्य शासन के बाद लोग बदलाव के लिए तैयार हैं…।